शिव शंकर के 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है ,सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को, वैसे तो इस ज्योतिर्लिंग से जुड़े कई रहस्य है लेकिन एक ऐसा रहस्य जो इसे दूसरे ज्योतिर्लिंग से भिन्न बनाता है वह ये है कि इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना कब हुई इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। मान्यता ये कहती है कि इस ज्योतिर्लिंग कि स्थापना खुद चंद्रदेव ने किया था। आइये इसके बारे में आज आपको विस्तार से बताते हैं।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की खासियत ही यही है कि इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण कब हुआ इसके बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है। मंदिर को मुगलों ने कई बार लूटा, कई विदेशी ताकतों ने इस मंदिर को जड़ से उखाड़ फेंकने की नाकाम कोशिश की, कई बार इस मंदिर की संपत्ति को लूटा गया, जितनी बार इस मंदिर को नष्ट करने के लिए दुष्ट पैदा हुए। उतनी ही बार इस मंदिर का पुनः निर्माण हुआ। सोमनाथ मंदिर की जो की एक हिंदू मंदिर है। गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह मे स्थित इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण चंद्रदेव ने करवाया था। इस मंदिर का उल्लेख ऋग्वेद में भी मिलता है। यह मंदिर हिंदू धर्म के उत्थान-पतन का प्रतीक रहा है। वही,लोक कथाओं के अनुसार यहीं पर भगवान् श्रीकृष्ण ने अपना देह त्याग किया था। इस कारण इस क्षेत्र का और भी ज्यादा महत्व बढ़ गया।
आइये आपको बताते है कैसे हुई इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना –
स्कन्द पुराण के अनुसार सोम अर्थात चंद्र ने प्रजापति राजा दच्छ की 27 कन्याओं के साथ विवाह किया था। लेकिन अपनी सभी पत्नियों में वह रोहिणी नाम की पत्नी को सबसे अधिक प्यार और सम्मान दिया करते थे। ये सब देखकर अन्य 26 पत्नियां अपमानित महसूस करने लगी। अपने पति से निराश होने सभी कन्याओं ने अपने पिता से इसकी शिकायत की। अपनी बाकी बेटियों के साथ यह अन्याय होते देख उन्होंने अपने दामाद चंद्र देव को समझाने का प्रयास किया परतु वह नहीं माने अंत में राजा दक्ष ने चंद्रदेव को श्राप देते हुए कहा, कि अब से हर रोज तुम्हारा तेज कम होता रहेगा। इस श्राप के फलस्वरुप हर दूसरे दिन चंद्र देव का तेज घटने लगा। श्राप से विचलित होकर चंद्र देव ने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी।
चंद्रमा ने 6 मास तक शिवजी की आराधना की उसके बाद शंकर जी प्रकट हुए और उन्होंने चंद्रमा को एक पक्ष में प्रतिदिन उनकी एक-एक कला नष्ट होने और दूसरे पक्ष में प्रतिदिन बढ़ने का वर दिया। इस तरह से शिव जी ने चंद्र देव के श्राप का निवारण किया कहते है कि देवताओं पर प्रसन्न होकर उस क्षेत्र की महिमा बढ़ाने और चंद्रमा जिनका एक नाम सोम भी है उनके यश के लिए सोमेश्वर नाम से शिवजी वहां अवस्थित हो गए। देवताओं ने इस स्थान पर सोमेश्वर कुंड की स्थापना की, कहते हैं कि इस कुंड में स्नान कर सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजा से सब पापों से निस्तार और मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है। सोमेश्वर से सोम अर्थात चंद्रमा, इसलिए यह ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस स्थान को ‘प्रभास पट्टन’ के नाम से भी जाना जाता है।
वही ,इस मंदिर से भगवान श्री कृष्ण का भी सम्बन्ध है – बता दे आपको भालुका नाम तीर्थ स्थाान पर जब भगवान श्रीकृष्णी विश्राम कर रहे थे, तब एक शिकारी को उनका पैर के तलवे के चिन्हा को हिरण की आंखे समझकर तीर मारा गया था जोकि भगवान श्रीकृष्णि के लगा था जिससे उनके प्राण निकले थे। दोस्तों देह त्या गने के बाद भगवान श्रीकृष्ण इसी स्था न से वैकुण्ठि धाम गये थे इसलिये इस स्थादन पर भगवान श्रीकृष्णट से संबंधित भव्यर मंदिर भी बना है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से जुड़ा इतिहास ये भी कहता है कि इस मंदिर पर एक नहीं बल्कि 17 बार हमला व इस मंदिर को लूटा जा चूका है लेकिन आज भी अपने पुरे दमखम के साथ खड़ा है ये ज्योतिर्लिंग। आपकी अधिक जानकारी के लिए आपको बता दे – सोने से बने सोमनाथ मंदिर पर कई बार आक्रमण हुए। 1026 ईसवी में महमूद गजनवी ने इस पर हमला करके इसे लूटा। फिर मालवा के परमार राजा भोज और गुजरात के सोलंकी राजा भीम ने फिर इसका निर्माण कराया। इसके बाद मुगल शासक औरंगजेब ने 1706 में मंदिर पर आक्रमण किया। इस तरह मंदिर पर कई हमले हुए। लेकिन भोलेनाथ का यह मंदिर आज भी अपने स्तंभ गडाए हुए है।